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रबीउल अव्वल का चांद नजर आ चुका है. इस साल पांच फ़रवरी को ईद मिलादुन्नबी मनायी जायेगी
571 में पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म मक्का में हुआ था.
रबीउल अव्वल का चांद नजर आ चुका है. इस साल पांच फ़रवरी को ईद मिलादुन्नबी मनायी जायेगी571 में पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म मक्का में हुआ था.
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एक सदका है अच्छी बात करना
रबीउल अव्वल का चांद नजर आ चुका है. इस साल पांच फ़रवरी को ईद मिलादुन्नबी मनायी जायेगी. 571 में पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म मक्का में हुआ था.
इसी याद में ईद मिलादुन्नबी का पर्व मनाया जाता है. इसलाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद (सल्ल.) इसलाम के आखिरी पैगम्बर हैं. आपने लोगों को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी. अल्लाह की प्रार्थना पर बल दिया और लोगों को पाक-साफ़ रहने के नियम बताये.
सलाम मजहब के आखिरी पैगम्बर हजरत मोहम्मद ( सल्ल. ) का स्वभाव दुश्मनों और गैर मुसलिमों के साथ भी मुसलमानों जैसा था. इसकी दलील यह है कि जिस रास्ते से हजरत मोहम्मद ( सल्ल. ) का गुजर होता था, वहीं पर एक यहूदी का घर था. वह आप को बहुत सताया करता था. जब आप उस रास्ते से गुजरते, वह आप पर कूड़ा फेंक दिया करता था.
आप उससे कुछ न कहते और कपड़े झाड़कर मुसकराते हुए गुजर जाते. जब एक दिन उसने आप पर कूड़ा नहीं फेंका तो आपको बहुत आश्चर्य हुआ. आपने लोगों से उस यहूदी के बारे में पूछा. पता चला कि वह बीमार है. आप फ़ौरन उसे देखने पहुंच गये. उसने जैसे ही आपको देखा, वह शर्म से पानी-पानी हो गया.
आपके इस स्वभाव से वह इतना प्रभावित हुआ कि उसी क्षण कलमा पढ़कर मुसलमान हो गया. उसी तरह एक यहूदी लड़का आपकी सेवा किया करता था. एक बार वह बीमार पड़ा. आप उसे देखने गये. उसके करीब बैठे, सांत्वना दी और इसलाम की दावत दी. वह लड़का भी मुसलमान हो गया. आप यह कहते हुए वापस आये, ‘खुदा का शुक्र है, जिसने इस लड़के को जहन्नुम से बचा लिया.’
हजरत मोहम्मद ( सल्ल. ) का संबंध अरब का एक मशहूर कबीला कुरैश से था. सन 571 में आपका जन्म मक्का में हुआ था. छह वर्ष की आयु में आपकी मां बीबी आमना का देहांत हो गया और आपके जन्म से पहले ही आपके पिता का देहांत हो चुका था. आठ वर्ष की आयु तक आपका पालन-पोषण आपके दादा ने किया. इसके बाद आपके चाचा अबुतालिब ने आपको बड़े स्नेह और प्यार से पाला. कम उम्र की अवस्था में चाचा के साथ आपने मुल्क-ए-शाम का तिजारती सफ़र भी किया.
युवा अवस्था में एक ऐसी संधि में शामिल रहे, जो तमाम कबीलों के बीच जुल्म के खिलाफ़ मजलूम की हिमायत की संधि ( हलफ़ुल फ़जुल ) थी. मक्के की मालदार महिला हजरत बीबी खदीजा ( रजि. ) का तिजारती माल लेकर काफ़िले के साथ मुल्क-ए-शाम गये. कामयाब तिजारत से वापस आने के बाद पच्चीस वर्ष की आयु में हजरत खदीजा ( रजि. ) से आपकी शादी हुई. आप जब चालीस वर्ष के हुए तो अल्लाह ने आप पर कुर्आन नाजिल फ़रमाया और आपको अपना पैगम्बर ( ईश्वर का संदेशवाहक ) बनाकर इस संसार के सारे इंसानों की तरफ़ भेजा.
आपने पहले अपने निकटतम संबंधियों और दोस्तों का परिचय इसलाम मजहब से कराया, फ़िर आमलोगों को इसलाम की दावत दी. सभ्य लोगों ने यह दावत कबूल की, जबकि दूसरे लोगों ने इस दावत को मानने से इनकार किया. इनकार करने वालों ने इसलाम की दावत का विरोध किया और आपका मजाक उड़ाया.
हजरत मोहम्मद ( सल्ल. ) के विरोधियों ने आपसे सौदेबाजी का प्रयास किया. दौलत, सुंदर औरतों और कबीले की सरदारी तक का लालच दिया. लेकिन आपने उनसे फ़रमाया कि, ‘अगर तुम मेरे एक हाथ में सूरज और एक हाथ में चांद भी लाकर रख दोगे तब भी मैं इसलाम की दावत देने का काम नहीं छोड़ सकता. यहां तक कि इसलाम गालिब हो जाये या इस कोशिश में मेरी जान ही क्यों न चली जाये.’ जब विरोधियों ने देखा कि इस तरह बात नहीं बनने वाली तो उन्होंने आपके साथियों पर बेपनाह जुल्म ढाना शुरू कर दिया.
इस परिस्थिति में आपने अपने साथियों को हाथ रोकने और संयम से काम लेने की प्रेरणा दी. अपनी मौत से तीन महीने पूर्व हजरत मोहम्मद ( सल्ल. ) ने विदाई हज फ़रमाया. इसमें एक लाख से ज्यादा सहाबा ( रजि.-आपके साथी ) शरीक थे. आपने अपने आखिरी संबोधन में इंसानी समानता, इंसानी अधिकार, आपसी मामलों को ठीक करने, निरक्षरता के तरीकों को खत्म करने और शहादत के हक का दायित्व निभाने का ऐलान किया.
इस दुनिया में इंसान को गुमराही से बचाने के लिए उन्हें कुर्आन को मजबूती से पकड़े रहने की वसीयत फ़रमायी. आपका इंतकाल 63 वर्ष की आयु में सन 632 में हुआ और मदीना में आपको दफ़न किया गया. आपके बाद आपके प्रशिक्षित सहाबा ( रजि. ) ने आपकी कही गयी बातों को इस दुनिया में फ़ैलाना जारी रखा.
हजरत मोहम्मद (सल्ल.) हमेशा सच बोलते थे. आपकी जबान से कभी कोई गलत बात सुनने में नहीं आयी. यहां तक कि मजाक में भी कोई झूठी बात आपने नहीं कही. आपके दुश्मनों ने आप पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगाये, मगर आपको झूठा कहने की हिम्मत न कर सके.
आपने फ़रमाया, ‘जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर विश्वास रखता है उसको चाहिए कि जबान से अच्छी बात निकाले अन्यथा चुप रहे.’ इसका मतलब यह है कि अगर आप सच्चा मुसलमान बनना चाहते हैं, तो हमें बदकलामी और ऐसी बातों से बचना चाहिए, जिससे दूसरों का दिल दुखे. एक बार आपने इरशाद फ़रमाया कि, ‘अच्छी बात सदका है.’ इसलिए आदमी को चाहिए कि वह हमेशा सच बोले.
( लेखक सेंट्रल करीमिया उच्च विद्यालय जमशेदपुर के अंगरेजी शिक्षक सह एनसीसी अधिकारी हैं. )
अफ़सर अली
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